बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
नवजात शिशु की सीमाओं पर टिप्पणी लिखो ।
उत्तर-
गर्भस्थ शिशु, जो माँ के शरीर से जन्म लेता है, उसे नवजात शिश (Neonate) कहते हैं। Neonate लैटिन भाषा का शब्द है, जो सम्भवतः ग्रीक भाषा के शब्द Neos से बना है, जिसका अर्थ है नया। नवजात शिशु (Neonate) शब्द का अर्थ है - वह नवजात शिशु, जिसकी आयु अधिक से अधिक 30 दिन की हों जन्म से आधा घण्टा आयु तक का बालक Partunate कहलाता है। Partunate period वह है, जिसमें बच्चे के Umbilical Cord को काटकर बच्चों को माँ अलग किया जाता है। वह एक स्वतन्त्र और माँ से भिन्न जीव बन जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिक Neonate के स्थान पर New Born Infant शब्द का प्रयोग करते हैं और इसकी आयु जन्म से केवल 10 दिन तक मानते हैं। नवजात शिशु की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं-
(Properties Related to Physical Development
शारीरिक विकास से सम्बन्धित निम्न चार विशेषताएँ हैं-
(अ) नवजात शिशु का आकार (Size of the Infant ) - जन्म के समय नवजात शिशु का औसत भार 7.5 पौण्ड तथा औसत लम्बाई 19.5 इंच होती हैं। भार के औसत का विस्तार 3-16 पौण्ड तक तथा लम्बाई के औसत का विस्तार 15-21 ईंच तक होता है। अक्सर जन्म के समय लड़के-लड़कियों की अपेक्षा अधिक लम्बे होते हैं। नवजात शिशु के आकार को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्न प्रकार से हैं
(i) माँ का आहार (Maternal Diet ) - माँस के आहार में प्रोटीन की मात्रा शिशु के आकार को सर्वाधिक प्रभावित करती है। स्मिथ और वाइन्स (Smith, 1947; Wines, 1947) के अनुसार, “माँ के आहार में पोषक तत्त्व जितने ही कम मात्रा में होंगे, नवजात शिशु का आकार उतना ही छोटा होता है।
(ii) आर्थिक स्तर (Economic Status) - माता-पिता के आर्थिक स्तर का सम्बन्ध माँ के आहार की मात्रा और क्वालिटी से है। गिब्सन (Gibson, 1951) ने अपने अध्ययनों में देखा कि उन लोगों में, जिनका आर्थिक स्तर निम्न होता है, उनके बच्चे आकार में छोटे और कम भार वाले उत्पन्न होते हैं।
(iii) गर्भस्थ शिशु की क्रियाएँ (Fetal Activity) - अध्ययनों में देखा गया है कि जो गर्भस्थ शिशु गर्भकालीन अवस्था में अधिक क्रियाशील होते हैं, वे जन्म के समय दुबले-पतले और कम भार के होते हैं।
(iv) अन्य कारक (Other Factor ) - जिन बच्चों को जन्म के 6 घण्टे या इसके बाद Feed किया जाता है, वे अपना भार कम (loose) हैं। कुछ अध्ययनों (Brown, 1939; Salber & Bradshaw, 1953, 1954) में यह देखा गया है कि जो बच्चे बसन्त और गर्मियों में होते हैं उनका अपना भार जल्दी बढ़ता है, परन्तु यह ठंडे देशों के लिए सही है। अपने देश में जो बच्चे जाड़े के प्रारम्भ में पैदा होते हैं, उनका अपना भार शीघ्र बढ़ता है। यह देखा गया है कि नया बच्चा जन्म के 7 दिन तक भार में घटता है और 7 दिन के बाद उनका अपना भार बढ़ने लग जाता है। जन्म के सात दिन के बाद शिशु का भार कितना शीघ्र बढ़ेगा, यह कई कारकों पर निर्भर करता है; जैसे - नवजात शिशु का जन्म क्रम, यौन, जन्म के समय आकार तथा जन्म का प्रकार आदि ।
(ब) शारीरिक अनुपात (Physical Proportions ) - हरलॉक (1968) का विस्तार है कि, “नवजात शिशु व्यस्क व्यक्ति नहीं है।” (The Newborn Infant is not a Adult) नवजात शिशु के शारीरिक अनुपात व्यस्क व्यक्तियों की अपेक्षा भिन्न होते हैं। उसका सिर उसके सम्पूर्ण शरीर का 1/4 होता है जबकि वयस्क व्यक्तियों में सिर और शरीर का अनुपात 1: 7 होता है। खोपड़ी ( Cranium) और चेहरे का अनुपात 8 : 1 होता है। नवजात शिशु के कन्धे पतले, गर्दन सँकरी, पेट कुछ लम्बा, नाक चपटी और जबड़े अविकसित होते हैं। उसकी भुजाएँ धड़ तथा पैर और सिर की तुलना में छोटी होती हैं।
(स) नवजात शिशु के विशिष्ट गुण (Infantile Features ) - नवजात शिशु के कुछ प्रमुख विशिष्ट गुण निम्न प्रकार से हैं-
(i) आँखें (Eyes ) - जन्म के समय आँखें हल्के भूरे रंग की होती हैं तथा जन्म के कुछ ही दिनों में आँखों का रंग बदलकर कोई स्थायी रंग बन जाता है-अधिकांश बच्चों की आँखें काली होती हैं। आँखें आकार की दृष्टि से परिपक्व लगती हैं, परन्तु इनका इनकी गतियों पर कोई विशिष्ट नियन्त्रण नहीं होता है। दोनों आँखों में कोई समन्वय नहीं होता है। ऐसा लगता है कि नवजात शिशु एक आँख में एक ओर और दूसरी आँख में दूसरी ओर देख रहा है।
(ii) गर्दन (Neck ) - नवजात शिशु की गर्दन बहुत छोटी होती है। चूँकि सम्पूर्ण शरीर की अपेक्षा सिर बड़ा होता है। अतः छोटी गर्दन दिखाई नहीं देती है। ऐसा लगता है कि बालक का सिर, धड़ से ही जुड़ा हुआ है।
(iii) बाल (Hair ) - नवजात शिशु के बाल रेशम की तरह मुलायम होते हैं। पीठ और कन्धों पर भी रेशम की तरह मुलायम बाल होते हैं जो जन्म से कुछ ही सप्ताह बाद झड़ जाते हैं।
(iv) माँसपेशियाँ (Muscles) - नवजात शिशु की माँसपेशियाँ छोटी और मुलायम होती हैं। शिशु का इन पर अधिक नियन्त्रण नही होता है। पैर और गर्दन की माँसपेशियाँ शरीर की अन्य माँसपेशियों की अपेक्षा कम विकसित होती हैं।
(v) हड्डियाँ (Bones ) - शिशु की हड्डियाँ बहुत लचीली, कोमल और कार्टिलेज की बनी हुई होती हैं।
(vi) त्वचा (Skin) - जन्म के समय बालक की त्वचा गुलाबी रंग की होती है। लगभग जन्म के 15 दिन बाद त्वचा का रंग स्थायी होने लग जाता है।
(vii) दाँत (Teeth) - जन्म के समय शिशुओं में दाँत नहीं पाए जाते हैं। मेसलर (Massler & Savara, 1950) ने अपने एक अध्ययन में देखा कि अमेरिका में 2,000 शिशुओं में एक शिशु के जन्म के समय दाँत अवश्य होते हैं। यह दाँत निचले जबड़े में आगे की ओर होते हैं। अपने देश में नवजात शिशु के दाँत होने और भी अनौखी बात है। जन्म के समय दाँतों के होने का कारण Geneftic Factors है।
(द) शरीरशास्त्री क्रियाएँ (Physiological Functions ) - बालकों की अपेक्षा नवजात शिशुओं की शरीर शास्त्रीय क्रियाएँ भिन्न होती हैं-
(i) श्वसन क्रिया (Respiration ) - नवजात शिशु जन्म होते ही रोना प्रारम्भ करता है। । रोने से उसके फेफड़े फूल जाते हैं और श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाती है (C.A. Smith, 1963)। स्पष्ट है कि शिशु का जन्म होते ही शिशु का रोना उसके जीने के लिए अति आवश्यक है। जन्म के समय प्रारम्भ में श्वसन - गति 40 से 50 Breathing Movement प्रति मिनट होती है । परन्तु एक सप्ताह के अन्त तक यह गति 35 गतियाँ प्रति मिनट रह जाती हैं। प्रौढ़ व्यक्तियों में श्वसन की गति 18 गतियाँ प्रति मिनट होती हैं। जब शिशु जागता है तब श्वसन की गति कम 32.3 गतियाँ प्रति मिनट और जब वह रोता है उस समय श्वसन - गति 133.3 गतियाँ प्रति मिनट पहुँच जाती हैं
(ii) हृदय की धड़कन (Heart Beats) - व्यस्क व्यक्तियों की अपेक्षा नवजात शिशु के हृदय की धड़कनें अधिक होती हैं; क्योंकि नवजात शिशु का हृदय आकार में छोटा होता है। एक अध्ययन (H. J. Grossman, N.H. Greenberg 1957) के अनुसार सामान्य रक्तचाप (Blood Pressure) बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि हृदय की धड़कनें अपेक्षाकृत अधिक- गति से हों।
(iii) तापक्रम (Temperature ) - नवजात शिशुओं में, चाहे वह अधिक स्वस्थ क्यों न हों; उनके शरीर का तापमान वयस्क व्यक्तियों की अपेक्षा कुछ अधिक ही नहीं होता है। बल्कि यह परिवर्तनशील (Variable) भी अधिक होता है। नवजात शिशुओं का तापमान 98.2 से 90° फारेनहाइट तक होता है।
(iv) नाड़ी की गति ( Pulse Rate) - जन्म के समय शिशु की नाड़ी की गति 130 से 150 Beats प्रति मिनट होती है; परन्तु कुछ ही दिनों बाद यह केवल 177 रह जाती है। वयस्क व्यक्तिों में नाड़ी की गति केवल 70 Beats प्रति मिनट होती है सोते समय शिशुओं की नाड़ी की गति 123.5 Beats प्रति मिनट तथा रोते समय 218.5 Beats प्रति मिनट होती है।
(v) चूसने सम्बन्धी सहजक्रिया गतियाँ (Reflex Suking Movements ) - जब नवजात शिशु के होंठ छुए जाते हैं अथवा जब वह भूखा होता है, उस समय उसमें चूसने सम्बन्धी सहज क्रियात्मक गतियाँ होती हैं। एक अध्ययन (B. Spock, 1964) में यह देखा गया है कि जो शिशु स्तनपान करते हैं, उनमें Sucking Movements अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक मात्रा में पाया जाते हैं।
(vi) भूख के आकुंचन (Hunger Rhythms) - जन्म के समय बालक में भूख आकुंचन नहीं होते हैं। यह आकुंचन दो या तीन सप्ताह की आयु के बाद विकसित होते हैं। एक अध्ययन (Pratt, 1954) के अनुसार, “नवजात शिशुओं का पेट 4 से 5 घण्टे में खाली हो जाता है। उनकी छोटी आँतें 7 से 8 घण्टे में खाली हो जाती हैं तथा बड़ी आँतें 2 से 14 घण्टे में खाली होती हैं। शिशु मल-मूत्र का त्याग अक्सर Feeding के 1/2 घण्टे बाद करता है। चौबीस घण्टे में शिशु लगभग 5 बार मल-मूत्र का त्याग करता है।" यह देखा गया है कि शिशु जिस समय मल-मूत्र का त्याग करता है, उस समय वह चुप रहता है (Halverson, 1940)।
(vi) नींद (Sleeps ) - नवजात शिशु पन्द्रह से बीस घण्टे प्रतिदिन सोता है परन्तु वह इतने घण्टे लगातार नहीं सोता है। वह लगभग दो-दो घण्टे की नींद लेता हैं। जैसे-जैसे उसकी आयु बढ़ती जाती है, उसकी नींद का अन्तराल बढ़ता जाता है तथा उसकी नींद भी दो-दो घण्टे के बजाए अधिक समय की होती है। भूख होने पर, पीड़ा होने पर या आन्तरिक कष्ट होने पर उसकी नींद खुल जाती है।
(Activities of the Infant )
नवजात शिशु की क्रियाएँ अनायास होती हैं। अधिकांश व्यर्थपूर्ण प्रकृति की होती हैं। नवजात शिशुओं की क्रियाओं को मुख्यतः दो भागों में बाँट सकते हैं-
(अ) सामान्य क्रियाएँ (Mass Activities) - यह शिशु की वे क्रियाएँ हैं जिनमें उसका सम्पूर्ण शरीर सम्बन्धित रहता है। यदि बालक के शरीर को कहीं से स्पर्श किया जाय तो बालक सम्पूर्ण शरीर के द्वारा अनुक्रिया करता है। यह भी देखा गया है कि बालक के दाहिने हाथ को यदि स्पर्श किया जाय तो बालक अपने बाएँ हाथ से भी समान अनुक्रिया करता है।
बालक में अधिकतर गतियाँ उसके चेहरे और हाथ-पैरों में होती हैं। शरीर के अन्य सभी अंगों में कम । गर्भकालीन अवस्था में जिन शिशुओं में क्रियाशीलता अधिक होती है, जन्म के बाद इन शिशुओं में क्रियाशीलता अधिक रहती है। अधिक प्रकाश या अधिक अंधेरे स्थान में यदि शिशु को ले जाया जाय, तो भी उसकी 'मास एक्टीविटीज' बढ़ जाती है। वातावरण के तापक्रम का प्रभाव भी बालक की इन क्रियाओं पर पड़ता है: परन्तु तापक्रम में थोड़ा परिवर्तन शिशु की इन क्रियाओं को प्रभावित नहीं करता है।
(ब) विशिष्ट क्रियाएँ (Specific Activities) – ये क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) सहज क्रियाएँ (Reflexes) - यह वह क्रियाएँ हैं, जो शिशु विशिष्ट संवेदनात्मक उद्दीपकों के प्रति एक निश्चित ढंग से करता है। यदि संवेदनात्मक उद्दीपक बार-बार उपस्थित किया जाय, तो भी ये क्रियाएँ परिवर्तित नहीं होती हैं। कुछ प्रमुख सहज - क्रियाएँ, जो शिशु में पाई जाती हैं, वह इस प्रकार से हैं-
(अ) आँख की पुतली से सम्बन्धित सहज क्रियाएँ
(ब) पाँव के तलवे से सम्बन्धित सहज क्रियाएँ
(स) माँसपेशियों से सम्बन्धित सहज - क्रियाएँ
(द) चूसण सहज - क्रियाएँ ( Sucking Reflexes)
(ii) सामान्यीकृत अनुक्रियाएँ (Generalized Responses ) - यह वह अनुक्रियाएँ हैं, जिनमें शरीर के एक से अधिक भार सम्मिलित होते हैं। जन्म के दो-तीन दिन तक शिशु की आँखें कभी खुल जाती हैं तो कभी बन्द हो जाती हैं। उसकी दोनों आँखों की क्रियाएँ समन्वयीकृत ( Coordinate) नहीं होता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक आँख से एक ओर और दूसरी आँख से दूसरी आँख से दूसरी ओर देख रहा है। शिश पहले दिन प्रकाश की ओर बहुत थोड़ी देर देख सकता है। कई बार जन्म के समय शिशुओं की आँखों से आँसू निकलते भी देखे गये हैं। इसी प्रकार जन्म के लगभग 20 मिनट बाद शिशुओं को अपना अंगूठा चूसते भी देखा गया है। जन्म के समय शिशु कभी अपना मुँह खोल लेता है, तो कभी बन्द कर लेता है। जन्म के कुछ दिनों तक बालक अपने सिर को बहुत थोड़ा घुमा सकता है। जन्म के कुछ दिनों बाद बालक को यदि बैठाया जाय, तो बैठाने पर वह आगे की ओर गिरता है। वह बिना किसी उद्देश्य के हाथ की मुट्ठी खोलता है और कभी बन्द कर लेता है। उसके हाथ और पैरों में गतियाँ जन्म के तुरन्त बाद प्रारम्भ हो जाती हैं।
(iii) नवजात शिशु का क्रन्दन (Crying of the Newborn ) - नवजात शिशु का क्रन्दन जन्म के समय या जन्म के कुछ ही देर में प्रारम्भ हो जाता है। यही उसका प्रथम स्वर और भाषा होती है। जन्म के कुछ समय तक शिशु की यह भाषा पूर्णत: एक प्रकार की सहज क्रिया होती है। जन्म के समय बालक के क्रन्दन का बहुत बड़ा लाभ है। उसके क्रन्दन से उसके फेफड़े फूल जाते हैं और उसकी श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाती है। श्वसन क्रिया प्रारम्भ होने से उसके रक्त को ऑक्सीजन मिलने लग जाती है। जन्म के समय वह पहला अवसर होता है जब मनुष्य अपनी आवाज प्रथम बार सुनता है। जन्म के 24 घण्टे बाद ही शिशु के क्रन्दन के अर्थ बदल जाते हैं। नवजात शिशुओं का क्रन्दन कुछ विशेष अक्षरों से प्रारम्भ होता है। रोते समय शिशु हाथ-पैर चलाता है और कभी हाथ की मुट्ठी खोलता है तो कभी बन्द करता है।
(iv) नवजात शिशु की संवेदनशीलता (Sensitivities of the Neonate ) - नवजात शिशु की संवेदनशीलता का अध्ययन कठिन है; क्योंकि इस प्रकार के अध्ययन अन्तर्दर्शन विधि से किये जाते हैं। अतः यह भी बताना कठिन है कि कौन-सी संवेदनाएँ शिशु में पाई जाती हैं और कितनी मात्रा में पाई जाती हैं। गेसेल (Gesell, 1949) के अनुसार, "जो बच्चे गर्भकालीन अवस्था के पूर्ण होने से पहले ही जन्म ले लेते हैं, वे भी तीव्र उद्दीपकों के प्रति उसी प्रकार अनुक्रिया करते हैं, जिस प्रकार अन्य बालक । शिशुओं में अन्य संवेदनाओं की अपेक्षा स्पर्श-संवेदना के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं।
(अ) दृष्टि (Sight) - जन्म के समय आँख का रेटिना, जिसमें दृष्टि की संवेदना के सेल्स पाये जाते हैं, पूर्ण रूप से परिपक्व नहीं होता है। जन्म के समय फोबिया में शंकु ( Cones) बहुत कम स्पष्ट होते हैं। अतः कहा जा सकता है कि जन्म के समय शिशु आंशिक रूप से 'कलर ब्लाइण्ड' होता है। यद्यपि अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि जन्म के सातवें दिन शिशु रंगों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। स्मिथ ( Smith, 1936 ) का विचार है कि, "लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ जन्म के सात दिन से नौ दिन में रंग उद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया अधिक करती हैं। "
(ब) श्रवण ( Hearing ) - जन्म के समय यह ज्ञानेन्द्री अन्य ज्ञानेन्द्रियों की अपेक्षा सर्वाधिक कम विकसित होती है। जन्म के तुरन्त बाद नवजात शिशु सुनते हैं या नहीं, इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों में एक मत नहीं है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि, जन्म के दस मिनट में ही बच्चा सुनने लग जाता है, परन्तु अन्य लोगों का विचार है कि जन्म के कुछ दिन बाद तक बालक पूर्णत: बहरा (Deaf) होता है।
(स) स्वाद (Taste ) - अन्य ज्ञानेन्द्रियों की अपेक्षा यह ज्ञानेन्द्री अत्यधिक विकसित होती है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि शिशु मीठी उत्तेजनाओं के प्रति धनात्मक अनुक्रिया करते हैं और नमकीन, खट्टी तथ कड़वी चीजों के प्रति ऋणात्मक अनुक्रिया करते हैं। प्रैट (Pratt, 1954) का विचार है कि, स्वाद संवेदनशीलता सीमान्त के सम्बन्ध में शिशुओं में अधिक वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
(द) गन्ध ( Smell ) - गन्ध संवेदनशीलता जन्म के समय काफी विकसित होती है या वह जन्म के कुछ ही दिनों में विकसित हो जाती है। माँ यदि अपने स्तन पर सिरके का अम्ल, अमोनिया, पेट्रोलियम, सन्तरे का तेल आदि लगाकर शिशु को स्तनपान कराये, तो शिशु स्तनपान नहीं करता है। प्रैट (Pratt, 1954) का विचार है कि, इस संवेदनशीलता में भी वैयक्तिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
(य) त्वक संवेदनशीलता (Skin Sensitivities) - स्पर्श, दबाव, ताप और पीड़ा सम्बन्धी संवेदनशीलता बालक में जन्म के समय पाई जाती है या इसका विकास जन्म के कुछ ही समय में हो सकता है। शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा कुछ अंग अधिक संवेदनशील होते हैं। अन्य अंगों की अपेक्षा होंठ अधिक संवेदनशील होते हैं। ताप उद्दीपकों की अपेक्षा शीत उद्दीपकों के प्रति शिशु अधिक अनुक्रिया करता है। जन्म के प्रथम दो दिन पीड़ा संवेदना कुछ कमजोर होती है। होंठ, हथेली और पैर के तलवे में यह संवेदना अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसी प्रकार पलक, माथे पर अनेक नाक की झिल्ली में यह संवेदना अधिक मात्रा में पाई जाती हैं।
(v) नवजात शिशु के संवेग (Emotions of the Neonate) - नवजात शिशुओं के संवेगों के सम्बन्ध में जो अध्ययन हुए हैं, वे कम हैं परन्तु जो भी अध्ययन हुए हैं, वे विस्तृत अधिक हैं। वाटसन (Watson, 1925) के अनुसार, शिशु में जन्म के समय या जन्म के कुछ ही समय बाद तीन संवेग पाए जाते हैं। वाटसन का यह भी विचार है कि, यह संवेग कुछ विशिष्ट उद्दीपकों के द्वारा शिशुओं में उत्पन्न किए जा सकते हैं। वाटसन के द्वारा बताये हुए तीन प्रमुख संवेग हैं- भय, क्रोध और प्रेम। बैकविन ( Bakwin, 1947) का विचार है कि, नवजात शिशुओं की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ अत्यधिक विकसित होती हैं। उनके अनुसार, जो नवजात शिशु गर्भकालीन अवस्था को पूर्ण किए बिना उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें भी समान प्रकार की संवेगात्मक अनुक्रियाएँ पाई जाती हैं।
(vi) नवजात शिशुओं में अधिगमन की क्षमता (Capacity for Learning in Infants) - कोई भी प्राणी किसी समस्या या क्रिया का अधिगम तब कर सकता है जब वह उस समस्या के सम्बन्ध में जागरूक हो । किसी समस्या के अधिगम के लिए यह भी आवश्यक है कि अधिगमकर्त्ता के स्नायु इतने विकसित और परिपक्व हों कि वह समस्या का अधिगम कर सकें। नवजात शिशुओं के स्नायु और मस्तिष्क इतने परिपक्व नहीं होते हैं कि वह किसी समस्या का सरल से सरल विधि द्वारा अधिगम कर सकें। नवजात शिशुओं में जागरूकता भी नहीं के बराबर पाई जाती है।
(vii) नवजात शिशुओं का व्यक्तित्व (Personality of the Neonate) -नवजात शिशुओं के व्यक्तित्व में अन्तर कुछ ही दिनों में दृष्टिगोचर होने लगता है। हम सभी जानते हैं कि कुछ नवजात शिशु सोने की तरह अच्छे और कीमती भी होते हैं और कुछ माता-पिता के लिए अत्यधिक परेशानी पैदा करने वाले होते हैं। नवजात शिशुओं के व्यक्तित्व में अन्तर वंशानुक्रम और वातावरण सम्बन्धी कारकों के कारण तो होते ही हैं, साथ ही साथ व्यक्तित्व में अन्तर अपरिपक्व जन्म (Premature Birth), जन्म के समय की परिस्थितियाँ तथा स्वास्थ्य की दशाएँ आदि कारकों के कारण भी होते हैं।
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- प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
- प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
- प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
- प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
- प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
- प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
- प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
- प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
- प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
- प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
- प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
- प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
- प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।